PM मोदी ने शुरू की ऐतिहासिक 5 देशों की यात्रा: वैश्विक साझेदारियों को मिलेगा नया आयाम


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 जुलाई 2025 से अपनी अब तक की सबसे लंबी और ऐतिहासिक 5 देशों की विदेश यात्रा की शुरुआत कर दी है। यह दौरा 2 जुलाई से 9 जुलाई तक चलेगा, जिसमें वे अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन के पांच देशों—घाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, अर्जेंटीना, ब्राजील और नामीबिया—का दौरा करेंगे।

यात्रा का उद्देश्य और महत्व

इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य भारत की 'ग्लोबल साउथ' नीति को मजबूती देना, व्यापार, ऊर्जा, तकनीक, स्वास्थ्य, निवेश, सुरक्षा और बहुपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देना है।

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने प्रस्थान वक्तव्य में कहा कि यह दौरा भारत की वैश्विक भूमिका को मजबूत करेगा और दोनों अटलांटिक किनारों के देशों के साथ साझेदारी को नई ऊंचाई देगा।

यात्रा का विस्तृत कार्यक्रम

दिनांकदेशमुख्य कार्यक्रम/मुलाकातें
2-3 जुलाईघानाराष्ट्रपति जॉन ड्रमानी महामा से मुलाकात, संसद को संबोधित, निवेश, ऊर्जा, स्वास्थ्य, सुरक्षा पर चर्चा
3-4 जुलाईत्रिनिदाद और टोबैगोराष्ट्रपति क्रिस्टीन कार्ला कांगालू और प्रधानमंत्री कमला प्रसाद-बिसेसर से मुलाकात, सांस्कृतिक संबंधों पर जोर
4-5 जुलाईअर्जेंटीनाराष्ट्रपति जेवियर मिली से मुलाकात, कृषि, व्यापार, तकनीक, क्रिटिकल मिनरल्स पर सहयोग
6-7 जुलाईब्राजीलरियो डी जनेरियो में BRICS शिखर सम्मेलन, राष्ट्रपति लुइज़ इनासियो लूला डा सिल्वा से द्विपक्षीय वार्ता
8-9 जुलाईनामीबियाराष्ट्रपति नेतुम्बो नांदी-नदैतवाह से मुलाकात, संसद को संबोधित, क्षेत्रीय सहयोग और साझा इतिहास पर चर्चा

BRICS शिखर सम्मेलन और बहुपक्षीय कूटनीति

ब्राजील में आयोजित BRICS शिखर सम्मेलन इस यात्रा का सबसे बड़ा आकर्षण है, जहां प्रधानमंत्री मोदी भारत की भूमिका को और मजबूत करेंगे और वैश्विक दक्षिण के मुद्दों को प्रमुखता से उठाएंगे।
भारत के लिए रणनीतिक लाभ
यह यात्रा भारत के लिए अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन देशों के साथ व्यापार, निवेश और रणनीतिक साझेदारी को गहरा करने का बड़ा अवसर है।

साथ ही, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों को भी नया आयाम मिलेगा, जिससे भारतीय प्रवासी समुदाय को भी मजबूती मिलेगी।

निष्कर्ष

प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा न सिर्फ भारत की विदेश नीति के लिए ऐतिहासिक है, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की नेतृत्व क्षमता और साझेदारियों को भी नई दिशा देगी। इससे भारत की 'ग्लोबल साउथ' में भूमिका और मजबूत होगी और बहुपक्षीय मंचों पर भारत की आवाज और बुलंद होगी।

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